आरोप: पुणे में ससुराल वाले करते थे बहू के मासिक धर्म के खून से जादू टोना

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विशेष संवाददाता

नई दिल्ली। हाराष्ट्र के पुणे में क्राइम का एक बेहद सनसनीखेज मामला सामने आया है. एक महिला ने अपने ससुरालवालों पर जादू-टोने के आरोप लगाए हैं. हैरान करने वाली बात ये है कि ये जादू-टोना किया जाता है महिला को आने वाले मासिक धर्म के ब्लड से। ये खबर बेहद अजीब है, लेकिन महिला ने इस मामले में केस दर्ज करवा दिया है और पुलिस जांच भी कर रही है.

पीरियड्स के ब्लड से जादू टोना!

पुणे के विश्वांतवाड़ी इलाके में रहने वाली 27 साल की सीमा ( बदला हुआ नाम) के मुताबिक उसके सास ससुर ने उसके पीरियड्स यानी महावारी के दौरान जबरन उसके हाथ पैर बांध दिए और फिर उसके पीरियड्स (Periods) के ब्लड को लिया गया. इस ब्लड को ससुरालवालों ने एक तांत्रिक को 50 हजार रुपये में जादू-टोने के लिए बेच दिया.

50 हजार में बेचा गया माहावारी का ब्लड

सीमा के सास-ससुर के अलावा उसका पति, कुछ और रिश्तेदार भी इस काम में शामिल है और एफआईआर में उसका नाम भी दर्ज है. जब सीमा के साथ ये घटना हुई तो उसके बाद इस बात की जानकारी उसने अपने परिवारवालों को दी जिसके बाद ये शिकायत थाने में दर्ज करवाई गई.

बहू ने ससुरालवालों पर लगाए आरोप

यह सब 2019 से शुरू हुआ. पुलिस के मुताबिक, 27 वर्षीय पीड़िता सीमा पुणे के विश्रांतवाड़ी इलाके में रहती है. पीड़िता और उसके पति ने 2 साल पहले प्रेम विवाह किया था. इसके बाद ससुराल वाले उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करने लगे. अघोरी विद्या के मद्देनजर ससुराल वालों ने माहवारी के दौरान पीड़िता के हाथ-पैर बांध दिए. रुई से उसके पीरियड्स का खून निकाला और उसे जादू-टोने के लिए 50 हजार रुपये में बेच दिया. पीड़िता ने जब आपबीती अपने माता-पिता को बताई तो वे पुलिस के पास पहुंचे. 

सीमा के पति सागर धवले, सास अनीता धवले, ससुर बाबासाहेब धवले के अलावा चार अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. पुलिस इस मामले में बेहद कड़ा रुख अपनाया है और सख्ती से इस मामले की जांच की जा रही है. ये जानने की कोशिश हो रही है कि इस तरह की हरकतें क्या किसी और के साथ भी की गई हैं.

राज्य महिला आयोग भी है केस पर सख्त

राज्म महिला आयोग भी इस मामले पूरी नजर बनाए हुए हैं और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई चाहता है. 21वीं सदी में जब समाज की ऐसी घिनौनी तस्वीर सामने आती है तो बेहद हैरानी होती और वो भी तब जब शहरों में रहने वाले पढ़े लिखे लोग इसमें शामिल हों.

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